Friday, May 7, 2021

होइहि सोइ जो राम रचि राखा

महाराज थोड़े अनमने थे। मन कुछ विचलित था। हालांकि दरबारियों के साथ बैठक में सारे फैसले उनकी इक्षा के अनुरूप हुए थे - कि कब नहीं होते थे। महाराज का नया महल भी तैयार होने वाला था, एक दो वर्षों में।

यही नहीं पहले भी सारे निर्णय महाराज के प्राचीनतम धर्मगुरुओं और आचार्यों के परामर्श के अनुरूप ही हुए थे। भव्य मंदिर बन रहा था। दरबारियों के सभा के लिए नए सभा भवन और महाराज के नए महल का निर्माण कार्य शुभ मुहूर्त में आरंभ हो कर चल रहा था।


परंतु उनकी महान भाषणवीर सेना पूर्व और दक्षिण के रियासतों को गंवा चुकी थी। पूर्वोत्तर में एक छोटी रियासत और दक्षिण में जोड़ तोड़ कर एक छोटा टापू ही बचा पाए। 


हाय अभागे लोग!

ये उत्तर वालों की तरह गोबर खाने को तैयार ना थे।


ऊपर से सल्तनत में पता नहीं कैसी वबा फैली थी जिसने लाखों प्रजा को अपना ग्रास बना लिया था, और जिसके बारे में विदेशों में यह अफवाह तेज़ी से फैल गई थी कि महाराज इसे रोक नहीं पाए। हालांकि इससे गोबर पट्टी में फैले उनके करोड़ों प्रशंसकों, भांडों, संदेशवाहकों की उनके प्रति भक्ति में कोई फ़र्क नहीं पड़ा था और वो अभी भी उनकी प्रशंसा के गीत गा रहे थे - कि कब नहीं गाते थे। महाराज ने तत्व ज्ञान मंत्री को आदेश दिया था कि प्राचीन ऋचाओं और मंत्रों की सहायता से इस वबा का उपचार शीघ्र अति शीघ्र खोजा जाए।


अब ये महाराज का प्रताप ही था कि विश्व के अन्य देशों ने सल्तनत को सहायता और उपहार भेजे थे, पुष्पकविमानों में लाद लाद कर। वैसे तो सल्तनत स्वयंभू था, विश्व गुरु था और सर्वसंपन्न था, उसे किसी सयाहता की आवश्यकता कब थी। लेकिन जब विदेशी मलेछ शासकों ने महाराज के प्रताप से प्रभावित हो कर उपहार भेज ही दिए थे तो विश्व गुरु के लिए उन्हें अस्वीकार करना सर्वथा अनुचित नहीं होता!


परंतु सल्तनत के निकम्मे मंत्री और संत्री, दरबारी और अधिकारी उन उपहारों और सहायता को प्रजा तक पहुंचा ही नहीं पा रहे थे। 


अब इसमें महाराज भला क्या कर सकते थे। नए महल के निर्माण कार्य की प्रगति देखने के बाद वो कबूतरों को दाना डालते और मोरों को पंख फैलाते निर्लिप्त भाव से सब देखते और सोचते तुलसी बाबा ठीक ही कह गए हैं कि "होइहि सोइ जो राम रचि राखा"!


महल के निर्माण क्रम में हजारों वृक्ष काटे गए थे। आखिर कुछ नया सृजन तभी होता है जब कुछ पुराना टूटता है। ये कब समझेंगे इस सल्तनत में उनके विरोधी। ना समझें उनकी बला से! उनके करोड़ों प्रशंसक, भांड और संदेशवाहक तो समझते ही हैं।

#कोरोनाकाल की कथा - 1









Facebook post of May 7, 2021

Picture from internet of India Gate, Delhi where Central Vista construction work is going on.

Monday, May 3, 2021

When exactly are we going to see the results on the ground?

 

On April 6 this year, we surpassed the peak of the first wave in terms of number of infected persons everyday, when the count of the Covid-19 infected people crossed 1 lakh mark. We crossed two lakhs marks on April 15 and 3 lakhs mark on April 21. For last 12 days the numbers of infected persons have been more than 3 lakhs per day. So it’s almost one month now the country is seeing number of infected people higher than the previous wave of 2020. Still where are our preparations?
We did hear and read about the government’s meetings and actions, strict warnings by various high courts, aids and supports by many many foreign countries, reopening of one closed controversial plant of a corporate house and many other things. But where are the actual results of all this announcements?
People are still sending SOS messages on social media, people are still running from one lead to other for the oxygen cylinders and refill, there are still desperate calls by patients’ family and friends for the hospital beds, embassies are relying on opposition parties for supply of oxygen and common citizen groups, NGOs, and CSOs are still struggling, in their limited capacities, to provide support to the needy people in terms oxygen, medicine, food, and last rites.
When exactly are we going to see the results on the ground?

FB Post on May 3, 2021

https://www.facebook.com/1251192604/posts/10225464900590032/?sfnsn=wiwspwa

Tuesday, February 2, 2021

बजट में केवल निजीकरण


डेली न्यूज़, जयपुर, फ़रवरी 2, 2021 

 

Wednesday, July 8, 2020

पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन अधिसूचना 2020: औद्योगिक हितों को तरजीह


डेेली न्यूज, जयपुर, 2 जुलाई 2020

इसे डेवलपमेंट डीबेट पर भी पढ़ा जा सकता है: 
http://www.developmentdebate.in/2020/06/2020